Article Title |
भारतीय प्रिंटमेकिंग के अग्रदूत: राजा रवि वर्मा |
Author(s) | Dr. Mahesh Singh. |
Country | India |
Abstract |
शोध सार 19वीं सदी के अंत और 20वीं सदी की शुरुआत में लिथोग्राफ, क्रोमोलिथोग्राफ और ओलियोग्राफ क्रांतिकारी तकनीकी विद्या के रूप में उभरे, जिन्होंने भारत में सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक विकास को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। भारत यूरोपीय देशों खासकर इटली और जर्मनी में छपे इन प्रिंट, पिक्चर पोस्टकार्ड और लेबल के एक बड़े बाजार के रूप में उभरा। इस तकनीक ने कालान्तर की हाथ से प्रतिलिपी बनाने की महंगी और थकाऊ प्रक्रिया की जगह ले ली। भारत में लिथो प्रिंट के आने से पहले, लकड़ी की कटाई, नक्काशी और हाथ से रंगाई की तकनीकें भी प्रचलन में थीं। विभिन्न देवताओं और संतों की दृश्य छवियां, पूजा के लिए एक साधारण घर में आसानी से उपलब्ध नहीं थीं। चूँकि भारतीय लघु चित्र शाही परिवारों के लिए थे, इसलिए ऐतिहासिक घर और मंदिर केवल कुछ ही कुलीन लोगों के लिए सुलभ थे। क्रोमोलिथोग्राफ और ओलियोग्राफ ने किंवदंतियों, देवताओं, लोकप्रिय मिथकों, ऐतिहासिक दृश्यों और धार्मिक ग्रंथों के उद्धरणों के तेल चित्रों की नकल की, जिससे बड़े पैमाने पर पौराणिक ग्रंथों का प्रसार संभव हो पाया। इन पौराणिक ओलियोग्राफ ने धर्मों को उनके अनुयायियों के एक बहुत बड़े जाति या वर्ग समूह के लिए खोल दिया। इस अवलोकनीय घटना या परिस्थिति ने पूजा की प्रकृति और तरीके को बदल दिया और दृश्य छवि का लोकतंत्र आया। बीज शब्दः ओलियोग्राफ, लिथोग्राफ, पिक्चर पोस्टकार्ड, पौराणिक, क्रोमोलिथोग्राफ |
Area | Fine Arts |
Issue | Volume 2, Issue 5, October 2025 |
Published | 01-10-2025 |
How to Cite | Singh, M. (2025). भारतीय प्रिंटमेकिंग के अग्रदूत: राजा रवि वर्मा. International Journal of Social Science Research (IJSSR), 2(5), 242-249, DOI: https://doi.org/10.70558/IJSSR.2025.v2.i5.30621. |
DOI | 10.70558/IJSSR.2025.v2.i5.30621 |