Article Title |
संगीत में अवनद्ध वाद्यों की उपयोगिता |
Author(s) | डा. राजेश कुमार मिश्रा. |
Country | India |
Abstract |
शब्द स्वर, लय और ताल मिलकर संगीत में रस की उत्पति करते हैं। साहित्य में छंद की विविधता और संगीत में ताल एवं लय के सामंजस्य द्वार विभिन्न रसों की सृष्टि की जाती है। तालविहीन संगीत नासिकाविहीन मुख की तरह बताया गया है। ताल से अनुशासित होकर ही संगीत विभिन्न भाव और रसो को उत्पन्न कर पाता है। ताल की गतियाँ स्तरो की सहायता के बिना भी रस-निष्पत्ति मैं समक्ष होती है। ताल यह ऐसी रचना है जो संगीत में समय को मापने के लिए प्रयोग की जाती है। इसकी लंबाई आवश्यकता अनुसार छोटी या बड़ी हो सकती है। स्वर और लय संगीत रूपी भवन के दो आधार स्तम्भ है। स्वर से राग और लय से ताल। लय मापने के लिए मात्रा की रचना की गई। संगीत गायन, वादन और नृत्य की त्रिवेणी है। इन तीनों में ताल का बड़ा महत्व है। गायक वादक को हमेशा ताल का ध्यान रखना पड़ता है। वह नई-नई कल्पना करता है, किन्तु ताल से बाहर नही जा सकता जितनी सुन्दरता से वह ताल से मिलता है, उतना ही उच्च कोटि का गायक कहलाता है। अच्छ गायक व वादक में ताल की कुशलता होना आवश्यक है। अलाप के अतिरिक्त संगीत की सभी चीजे तालबद्ध होती है, इसलिए अलाप शुरू में किया जाता है, और अलाप के समाप्त होते ही ताल शुरू होता है। गीतों के प्रकारों के आधार पर विभिन्न प्रकार के तालों की रचना हुई। ख्याल के लिए तीनताल, झपताल झूमरा, तिलवाडा, रूपक आदि। तथा धु्रपद के लिए चारताल, शुलताल आदि की रचना हुई। |
Area | Music |
Issue | Volume 2, Issue 4, July 2025 |
Published | 21-07-2025 |
How to Cite | International Journal of Social Science Research (IJSSR), 2(4), 116-119, DOI: https://doi.org/10.70558/IJSSR.2025.v2.i4.30461. |
DOI | 10.70558/IJSSR.2025.v2.i4.30461 |